Bhaskar News

New shed to be built in Chitrakoot’s Madfa Panchmukhi Mahadev Temple | DM ने मंदिर में किये दर्शन, बिजली-पानी, नई पार्किंग बनाने के निर्देश, इसी मंदिर में मत्था टेकते थे डकैत

चित्रकूट14 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक

चित्रकूट में दैनिक भास्कर की खबर का बड़ा असर हुआ है। एक महीने पहले ‘खूंखार डकैत यहां माथा टेकते थे। हाथों वाले महादेव’ खबर में भास्कर ने मड़फा महादेव मंदिर में देखरेख की कमी का मुद्दा उठाया था। इसके बाद अब प्रशासन ने मंदिर के विकास के लिए नया खाका तैयार किया है।

मड़फा पहाड़ पर पर्यटक स्थल शिव मंदिर और किले का डीएम अभिषेक आनंद ने निरीक्षण किया। उन्होंने पर्यटकों के लिए सुविधाएं बढ़ाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए। डीएम अभिषेक शिवमंदिर पहुंचे। उन्होंने दर्शन करने के बाद क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी अनुपम श्रीवास्तव से यहां बिजली, पानी व यात्री शेड का निर्माण करने के लिए कहा। जिलाधिकारी ने आदेश दिया है कि मंदिर में पेयजल की व्यवस्था के लिए बोरिंग कराई जाए। मुख्य सड़क से मंदिर के लिए रास्ता जाना है, उसका भी चौड़ीकरण किया जाए। मंदिर के नीचे पार्किंग की व्यवस्था की जाए।

दैनिक भास्कर ने मड़फा महादेव मंदिर स्थान पर पानी, बिजली की समस्या के साथ इसकी व्यवस्था में लापरवाही की बात उठाई थी। अब आइए इस मंदिर के इतिहास के बारे में जानते हैं…

डीएम अभिषेक आनंद ने मंदिर में पूजा अर्चना की।

डीएम अभिषेक आनंद ने मंदिर में पूजा अर्चना की।

ऊंची पहाड़ी पर है मंदिर

चित्रकूट से होकर भरतकूप जाने वाले रास्ता। चारों तरफ ऊंची-ऊंची पहाड़ियां और दूर ऊंचाई पर नजर आता भगवान शिव का एक विशाल मंदिर। नाम है- मड़फा पंचमुखी महादेव। घने जंगलों में बने इस प्राचीन तीर्थ स्थल का रोचक इतिहास है। कहते हैं कि यहां पर सावन के महीने में पुलिसवालों से लेकर डकैत तक भगवान शंकर का जलाभिषेक करने आते थे। मंदिर को लेकर इतनी गहरी आस्था कि छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा डाकू, डकैती पर जाने से पहले यहां माथा टेकने जरूर आता था। सिर्फ यही नहीं…मन्नत पूरी होने पर डकैत यहां चढ़ावा भी चढ़ाते थे। मंदिर की छत का निर्माण भी बीहड़ के डकैतों ने ही करवाया था।

कामदगिरि से 22 किमी दूर

यह जगह कामदगिरि से 22 किमी दूर है। कुख्यात दस्यु ददुआ, ठोकिया और बबली से लेकर डकैत गौरी यादव तक यहां पर विराजमान मड़फा महादेव के भक्त थे। उनसे जुड़े किस्से-कहानियां यहां फैले हुए हैं।चित्रकूट के बरिया मानपुर गांव के पास पड़ता है मड़फा दुर्ग। इसके चारों ओर ऊंची पहाड़ियां और घने जंगल हैं। गांव से सटी 1200 फीट ऊंची पहाड़ी पर खड़ी चढ़ाई के बाद मड़फा किला मिलता है। इसी किले में है पंचमुखी महादेव मंदिर। इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव की विशालकाय मूर्ति लाल बलुआ पत्थर से बनी है। प्रतिमा में तांडव नृत्य की मुद्रा में शिव की कई भुजाएं दिखती हैं। महादेव गले में नरमुंडों की माला पहने हुए हैं। बताया जाता है कि शिव की ऐसी मूर्ति पूरे भारत में कहीं नहीं है।

पहाड़ के ऊपर बने पंचमुखी महादेव मंदिर के आसपास का निरीक्षण करते चित्रकूट के डीएम अभिषेक आनंद

पहाड़ के ऊपर बने पंचमुखी महादेव मंदिर के आसपास का निरीक्षण करते चित्रकूट के डीएम अभिषेक आनंद

चंदेलों के राज में बना था मंदिर

मड़फा महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी गोवर्धन कहते हैं, “वैसे तो इस मंदिर की कहानी त्रेता युग से जुड़ी हुई है। लेकिन इसका प्रमाणित इतिहास चंदेल राज वंश में मिलता है। चंदेलों ने 8वीं से 12वीं शताब्दी तक बुंदेलखंड के इस हिस्से में राज किया। उसी दौरान मड़फा की पहाड़ियों पर किले का निर्माण हुआ और इस मंदिर की नींव रखी गई। बाद में इस विरासत को बघेलों ने संभाला। रामचन्द्र बघेल के शासनकाल तक यह क्षेत्र बघेलों के कब्जे में रहा फिर रामचन्द्र बघेल ने इसे मुगल बादशाह अकबर को दे दिया था।”

“समय के साथ-साथ मड़फा दुर्ग की दीवारें कमजोर होती गईं। पुराना मंदिर गिर गया। बाद में नए मंदिर को बनवाने का काम बीहड़ के लोगों ने किया। घने जंगलों के बीच बना ये मंदिर कुख्यात डकैतों की आस्था का केंद्र भी रहा। दस्यु सम्राट ददुआ, ठोकिया यहां तक कि 2 साल पहले मारा गया डकैत गौरी यादव भी इस मंदिर पर माथा टेकने आता था।”

डकैतों ने 350 मीटर ऊंचाई पर बनवाई मंदिर की छत
पहाड़ों की तलहटी पर बसे मानपुर गांव के छोटू पटेल ने शिव मंदिर से जुड़ा एक रोचक किस्सा बताया। छोटू कहते हैं, “पुराना मंदिर गिरने के बाद ऊंची पहाड़ी पर नया मंदिर फिर से बनाना कठिन काम था। इतनी ऊंचाई पर ईंट, बालू और पत्थर ले जाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। तब यहां के डकैतों ने मंदिर बनाने में सहयोग किया। डकैत घर-घर जाकर लोगों को धमकाते। कहते थे कि हर घर से एक आदमी मंदिर बनाने में मदद करेगा। निर्माण के सामान को खुद ऊपर तक ले जाएगा। इस फरमान के बाद लोग घरों से बाहर निकलने लगे।”

“जो काम नामुमकिन लग रहा था। वह महज 3 महीने के अंदर पूरा हो गया। पहाड़ी पर नया मंदिर बना और उसकी छत डकैतों ने अपने पैसों से डलवाई। तभी से इस मंदिर को लेकर डकैतों का इतिहास भी जुड़ गया। साल 2007 में इसी क्षेत्र में बीहड़ के दुर्दांत डकैत ठोकिया का आतंक था। ठोकिया मड़फा का ही रहने वाला था। यहां के घर-घर में उसके आतंक की कहानियां लोगों को आज भी याद हैं। ठोकिया सावन में पंचमुखी महादेव मंदिर में जलाभिषेक कर भंडारा भी करवाता था।”

डाकुओं ने कभी भी भक्तों को परेशान नहीं किया
मंदिर की देखरेख करने वाले विनोद ने बताया, “2020 के बाद यहां डकैतों का आना बंद हो गया। पहले यहां के डाकू मंदिर की चोटी पर चढ़कर शंख बजाते थे। महादेव के जयकारे लगाते थे। वह लोग हर सावन में यहां आकर पूजा करते थे। लेकिन कभी दूसरे भक्तों को परेशान नहीं किया।”

डकैतों के सहयोग से बनी मंदिर की छत आज भी मौजूद है। मंदिर के पिछले छोर पर एक विशाल तालाब भी बना है, जहां डकैत शिव के दर्शन से पहले स्नान किया करते थे। मंदिर के पुजारी के अनुसार, हर साल सावन के महीने में मड़फा मंदिर में हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां के तालाब में स्नान कर महादेव का जलाभिषेक करता है, उसे पुनर्जन्म से मुक्ति मिल जाती है।

पुलिस को चकमा देकर ठोकिया ने किया जलाभिषेक
मंदिर में सावन के हर सोमवार दर्शन करने वाले भक्त विकास कुमार कहते हैं, “साल 2007 की बात है। डकैत ठोकिया मंदिर में जलाभिषेक करने अक्सर आया करता था। ये बात पुलिस को पता चली तब उसे पकड़ने के लिए मंदिर में जाल बिछाया गया। सावन के पहले सोमवार के दिन सुबह से ही मंदिर में भारी पुलिस फोर्स लगा दी गई। बावजूद इसके ठोकिया की एक तरकीब ने उसे बचा लिया। डकैत पुलिस को चकमा देते हुए मंदिर में साधु के वेष में घुसा और जल चढ़ाकर वहां से चला गया।”

“जब तक पुलिस को डकैत ठोकिया की जानकारी मिलती, वह जंगल में अपने ठिकाने की तरफ भाग गया। इस मंदिर में डाकुओं की श्रद्धा इसलिए भी थी क्योंकि यह घने जंगलों के बीचोबीच था। जंगल में छिपना आसान था, इसलिए डाकू मड़फा की पहाड़ियों को छिपने के लिए सबसे सुरक्षित जगह मानते थे।”

आइए अब आपको मंदिर के दर्शन करवाते हैं…

पंचमुखी महादेव मंदिर मड़फा किले की चोटी पर है। यहां तक पहुंचने के लिए आपको 1200 फीट ऊंचे रास्ते पर चढ़ाई करनी होगी। पहाड़ी पर ऊपर जाने के 3 रास्ते हैं। पहला रास्ता बरिया मानपुर गांव से निकलता है। दूसरा सवारियां गांव से और तीसरा मार्ग कुरहन गांव से होकर निकलता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे आसान रास्ता बरिया मानपुर गांव का है। यहां से 550 सीढ़ियां चढ़कर पहाड़ की चोटी तक पहुंचा जा सकता है।

पहाड़ी के शिखर पर पहुंचते ही सबसे पहले मड़फा का किला दिखाई देगा। देखरेख की कमी के कारण यह दुर्ग अब खंडहर हो चुका है। अब किले के कुछ अवशेष ही बचे हैं। मड़फा किले के ठीक सामने सफेद रंग का पंचमुखी महादेव मंदिर है। इसी मंदिर में भगवान शिव की तांडव नृत्य करते हुए विशाल मूर्ति है।

सभी शिवालयों से इस मंदिर की मूर्ति अलग क्यों है? हमारे सवाल पर आचार्य डॉ. दीनदयाल त्रिपाठी कहते हैं, “मड़फा शिव मंदिर का इतिहास चंदेल राज वंश से जुड़ा हुआ है। चंदेलों ने दक्षिण से उत्तरी भारत में शिव के आगमुक्त पूजा विधान को जीवित किया था। इसमें शिवलिंग की जगह महादेव के विग्रहों यानी कि मुर्तियों की पूजा शुरू हो गई। इस शैली को तांत्रिक पूजा विधान भी कहा जाता है। वक्त के साथ-साथ यह पूजन शैली लोगों के बीच प्रचलित हुई। यही कारण है कि इस मंदिर में अष्टभुजी शिव मूर्ति की पूजा की जाती है।”

शक्ति की तरह शिव के सामने नारियल फोड़कर चढ़ाते हैं
एक पहाड़ी पर फैले इस मंदिर की आस्था कई राज्यों तक फैली है। सावन के दौरान मंदिर में यूपी, मध्यप्रदेश और गुजरात से 50 हजार से 1 लाख के बीच श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां पर चढ़ने वाला प्रसाद भी बाकी शिव मंदिरों से अलग होता है। भक्त यहां आकर महादेव के सामने नारियल फोड़कर चढ़ाते हैं। ठीक वैसे ही जैसा देवी मंदिरों में होता है। मंदिर से पश्चिम दिशा में 500 मीटर आगे बढ़ने पर कई प्राकृतिक गुफाएं और तालाब मिलेंगे। कहते हैं कि साल के 12 महीने इनका पानी कभी सूखता नहीं है।

मंदिर के मुख्य पुजारी गोवर्धन कहते हैं, “मंदिर उसी स्थान पर बना है जहां पर मांडव्य ऋषि ने तपस्या की थी। इसी तपोस्थली पर महाराज दुष्यंत की पत्नी शकुंतला ने पुत्र भरत को जन्म दिया था। महाशिवरात्रि और सावन के सोमवार पर यहां विशाल मेला लगता है। लेकिन प्रशासन ने यहां के विकास के लिए कभी ठोस प्रयास नहीं किया। कई बार मंदिर तक रोप-वे बनाए जाने का एप्लिकेशन भी दिया गया, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।”

मंदिर के कुंड में नहाकर मिलता है कुष्ट रोग से छुटकारा
मड़फा किले के देखरेखकर्ता विनोद कहते हैं, “इस स्थान को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां बने तालाबों में नहाने से कुष्ट रोग खत्म हो जाता है। एकबार देवराज इंद्र ने गुस्से में आकर वेदवती नाम की एक सुंदर अप्सरा को चर्मरोग होने का शाप दिया था। बाद में शापग्रस्त अप्सरा की विनती पर इंद्र ने उसे मांडव ऋषि के आश्रम जाकर न्यग्रोध कुंड में स्नान करने की सलाह दी। इसके बाद वेदवती ने कुंड में नहाकर वहां विराजमान पंचमुखी भगवान शिव की पूजा की। आखिरकार वह शापमुक्त हो गई।”

“इस कथा के कारण देश भर से यहां आने वाले लोग मंदिर के कुंड में स्नान करते हैं। फिर पंचमुखी महादेव के दर्शन करते हैं। इसी तालाब के पास चंदेलकालीन नगर के ध्वस्त हो चुके अवशेष भी देखे जा सकते हैं। इस जगह को वैश्विक धरोहर मानते हुए केंद्रीय पुरातत्व विभाग इसे संरक्षित कर रहा है।”

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button